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ग़ज़ल
क्या तमाशा देखिए तहसील-ए-ला-हासिल में है
एक दुनिया का मज़ा दुनिया-ए-आब-ओ-गिल में है
सरवर आलम राज़
ग़ज़ल
अजब हैं हम ये किस की सई-ए-ला-हासिल पे रोते हैं
अभी ज़िंदा हैं और नाकामी-ए-क़ातिल पे रोते हैं
पीरज़ादा क़ासीम
ग़ज़ल
सब बातें ला-हासिल ठहरीं सारे ज़िक्र फ़ुज़ूल गए
याद रहा इक नाम तुम्हारा बाक़ी सब कुछ भूल गए
अज़हर अली
ग़ज़ल
तिरी कोशिश हम ऐ दिल सई-ए-ला-हासिल समझते हैं
सर-ए-मंज़िल तुझे बेगाना-ए-मंज़िल समझते हैं
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
ग़ज़ल
बे-मा'नी ला-हासिल रद्दी शे'रों का है जाल उधर
जो चीज़ें बे-कार हैं प्यारे उन चीज़ों को डाल उधर
सबा नक़वी
ग़ज़ल
मोहब्बत में जिन्हें हर गाम पर होती है नाकामी
वही कुछ क़द्र-ए-ज़ौक़-ए-सई-ए-ला-हासिल समझते हैं
सय्यद वाजिद अली फ़र्रुख़ बनारसी
ग़ज़ल
आरज़ू नायाफ़्त की है सिलसिला-दर-सिलसिला
है नुमूद-ए-कर्ब-ए-ला-हासिल भी हासिल के क़रीब
आलमताब तिश्ना
ग़ज़ल
मोहब्बत सिर्फ़ इज़हार-ए-मोहब्बत को नहीं कहते
फ़रेब-ए-सई-ए-ला-हासिल न तुम समझे न हम समझे
कैफ़ मुरादाबादी
ग़ज़ल
तल्ख़ कर लें ज़िंदगी क्यों फ़िक्र-ए-मुस्तक़बिल से हम
बाज़ आए इस जुनून-ए-सई-ए-ला-हासिल से हम
अब्दुस्समद क़ैसर
ग़ज़ल
बढ़ाए जा क़दम राह-ए-तलब में शौक़ से 'वहशी'
कि हद-ए-सई-ए-ला-हासिल फ़क़त कौन-ओ-मकाँ तक है
वहशी कानपुरी
ग़ज़ल
तिरे क़स्र-ए-वफ़ा की छत तले ज़िंदा तो हैं हम-दम
मगर इस साएबान-ए-शौक़-ए-ला-हासिल का क्या कहना