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ग़ज़ल
क्या लड़के दिल्ली के हैं अय्यार और नट-खट
दिल लें हैं यूँ कि हरगिज़ होती नहीं है आहट
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
गोया फ़क़ीर मोहम्मद
ग़ज़ल
दौड़ में जितने भी लड़के हैं वो जूते में हैं
मैं बिना पाँव हूँ मुमकिन है पिछड़ सकता हूँ
अमूल्य मिश्रा
ग़ज़ल
ये तिफ़्ल-ए-अश्क दामन-गीर है हर आन में मुझ से
बहाने से मैं लड़के को रखूँ किस तरह कर बहला
फ़त्तावत औरंगाबादी
ग़ज़ल
लड़के बाले मीलों पैदल पढ़ने जाया करते थे
पास है जो स्कूल वो पहले दूर-उफ़्तादा होता था
एहतिशाम हसन
ग़ज़ल
बड़े बूढ़े हमारे जिस को बर्बादी समझते हैं
नई नस्लों के लड़के उस को आज़ादी समझते हैं