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ग़ज़ल
तिरी रहमत का लंगड़े और लूलों को सहारा है
इलाही नाम-ए-आली है असा-ए-ना-तवाँ तेरा
शाह अकबर दानापुरी
ग़ज़ल
था यक़ीन लंगड़ा उधर और प्यार अंधा था इधर
पाँव लंगड़े को मिला अंधे को तारा देखिए
चंद्रशेखर पाण्डेय शम्स
ग़ज़ल
सच ही लिखा था इक इंसान ने जिस दिन कलजुग आएगा
लूले लंगड़े राज करेंगे अंधा राह दिखाएगा
मिन्हाज नक़ीब
ग़ज़ल
लगने न दे बस हो तो उस के गौहर-ए-गोश को बाले तक
उस को फ़लक चश्म-ए-मह-ओ-ख़ुर की पुतली का तारा जाने है
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
सूरज में लगे धब्बा फ़ितरत के करिश्मे हैं
बुत हम को कहें काफ़िर अल्लाह की मर्ज़ी है