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ग़ज़ल
लँगोट तक भी मिरा ले गए वो अंगिया को
लुटा हूँ ऐसा कि कोई लुटा ग़दर में नहीं
इनायत अली ख़ान इनायत
ग़ज़ल
'नासिर' क्या कहता फिरता है कुछ न सुनो तो बेहतर है
दीवाना है दीवाने के मुँह न लगो तो बेहतर है
नासिर काज़मी
ग़ज़ल
पुरानी कश्तियाँ हैं मेरे मल्लाहों की क़िस्मत में
मैं उन के बादबाँ सीता हूँ और लंगर बनाता हूँ
सलीम अहमद
ग़ज़ल
रक़ीब-ए-रू-सियह के हाल का गर माजरा पूछे
तो उस के सामने जंगल से इक लंगूर ले जाना