आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "laTo.n"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "laTo.n"
ग़ज़ल
तेरी लटों में सो लेते थे बे-घर आशिक़ बे-घर लोग
बूढ़े बरगद आज तुझे भी काट गिराया लोगों ने
कैफ़ भोपाली
ग़ज़ल
इज्तिबा रिज़वी
ग़ज़ल
ग़ुलाम उस की लटों का है नहीं गोरों का ये 'अख़्तर'
कभी आज़ाद क्या दिल का मिरे हिन्दोस्ताँ होगा
अख़्तर आज़मी
ग़ज़ल
मेरे लबों पे मोहर थी पर मेरे शीशा-रू ने तो
शहर के शहर को मिरा वाक़िफ़-ए-हाल कर दिया