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ग़ज़ल
इंसान का बस नफ़्स-ए-अम्मारा मुख़र्रब है
ला-हौल वला क़ुव्वत शैताँ किसे कहते हैं
वज़ीर अली सबा लखनवी
ग़ज़ल
शब के पुर-हौल मनाज़िर से बचा ले मुझ को
मैं तिरी नींद हूँ आँखों में छुपा ले मुझ को
सलीम सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
अपने लफ़्ज़ों से किसी दिल को दुखाने वाला
सोचता क्यों नहीं मुफ़्लिस को सताने वाला