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ग़ज़ल
गिरा के का'बा-ए-दीन कर्बल के दश्त में बे-हया कहीं के
वो देखो रूठे खड़े हैं इनआ'म के लिए सब लईन तौबा
असद रज़ा सहर
ग़ज़ल
मुझ से रक़ीब-ओ-लईं जीव में रखता है कीं
उस सग-ए-नापाक सूँ ख़ूब नहीं बोलना
उबैदुल्लाह ख़ाँ मुब्तला
ग़ज़ल
ताैफ़ीक़ हैदराबादी
ग़ज़ल
ख़ुदा के बंदों की सोहबत को इख़्तियार करो
न जोड़ो अपना त'अल्लुक़ किसी ल’ईन के साथ