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ग़ज़ल
वो लड़ कर भी सो जाए तो उस का माथा चूमूँ मैं
उस से मोहब्बत एक तरफ़ है उस से झगड़ा एक तरफ़
वरुन आनन्द
ग़ज़ल
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
करा तो लूँगा इलाक़ा ख़ाली मैं लड़-झगड़ कर
मगर जो उस ने दिलों पे क़ब्ज़े किए हुए हैं
ज़िया मज़कूर
ग़ज़ल
वो भी कोई हम ही सा मासूम गुनाहों का पुतला था
नाहक़ उस से लड़ बैठे थे अब मिल जाए मनाएँगे
बशर नवाज़
ग़ज़ल
मैं कितने रंगों में ढलता कब तक ख़ुद से लड़ पाता
जीवन एक सफ़र था जिस ने रोज़ नया इक मोड़ लिया
वसीम बरेलवी
ग़ज़ल
अर्श मलसियानी
ग़ज़ल
फ़ना तालीम-ए-दर्स-ए-बे-ख़ुदी हूँ उस ज़माने से
कि मजनूँ लाम अलिफ़ लिखता था दीवार-ए-दबिस्ताँ पर
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
हम ऐसे सूरमा हैं लड़ के जब हालात से पलटे
तो बढ़ के ज़िंदगी ने पेश कीं बैसाखियाँ हम को
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
ग़ज़ल
'ज़फ़र' इतना ही काफ़ी है जो वो राज़ी रहे हम पर
कमर अपनी पे कोई बोझ हम ने लाद रक्खा है
ज़फ़र इक़बाल
ग़ज़ल
कल लड़ गईं कूचे में आँखों से मिरी अँखियाँ
कुछ ज़ोर ही आपस में दो दो हुईं समघातें