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ग़ज़ल
'नासिर' क्या कहता फिरता है कुछ न सुनो तो बेहतर है
दीवाना है दीवाने के मुँह न लगो तो बेहतर है
नासिर काज़मी
ग़ज़ल
न जाने कब किसी के ख़्वाब से ये दिल धड़क जाए
अगर सोने लगो तो हाथ सीने पर धरे रखियो