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ग़ज़ल
हमें हैं इश्क़ के पंनथ में दोनो आलम थे बे-परवा
लगया है दाग़ मुंज दिल पर उस हिन्दोस्तानी का
क़ुली क़ुतुब शाह
ग़ज़ल
मुझे इश्तिहार सी लगती हैं ये मोहब्बतों की कहानियाँ
जो कहा नहीं वो सुना करो जो सुना नहीं वो कहा करो
बशीर बद्र
ग़ज़ल
लगने न दे बस हो तो उस के गौहर-ए-गोश को बाले तक
उस को फ़लक चश्म-ए-मह-ओ-ख़ुर की पुतली का तारा जाने है