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ग़ज़ल
मिरी रिफ़अ'तों से लर्ज़ां कभी मेहर-ओ-माह ओ अंजुम
मिरी पस्तियों से ख़ाइफ़ कभी औज-ए-ख़ुसरवाना
मुईन अहसन जज़्बी
ग़ज़ल
जू-ए-एहसास में लर्ज़ां ये गुरेज़ाँ लम्हात
नग़्मा-ए-दर्द में ढल जाएँ ज़रूरी तो नहीं
ज़ाहिदा ज़ैदी
ग़ज़ल
परवाने की ख़ाक परेशाँ शम' की लौ भी लर्ज़ां लर्ज़ां
महफ़िल की महफ़िल है वीराँ कौन करे अब किस का मातम
हफ़ीज़ होशियारपुरी
ग़ज़ल
तुझ से मिल कर भी तमन्ना है कि तुझ से मिलता
प्यार के बा'द भी लब रहते हैं लर्ज़ां जैसे
अहमद नदीम क़ासमी
ग़ज़ल
धोका है ये नज़रों का बाज़ीचा है लज़्ज़त का
जो कुंज क़फ़स में था वो अस्ल गुलिस्ताँ है
असग़र गोंडवी
ग़ज़ल
रहील-ए-शौक़ से लर्ज़ां था ज़िंदगी का शु'ऊर
न जाने किस लिए हम बे-ख़बर से गुज़रे हैं