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ग़ज़ल
उस एक कच्ची सी उम्र वाली के फ़लसफ़े को कोई न समझा
जब उस के कमरे से लाश निकली ख़ुतूत निकले तो लोग समझे
अहमद सलमान
ग़ज़ल
जावेद अख़्तर
ग़ज़ल
लाश के नन्हे हाथ में बस्ता और इक खट्टी गोली थी
ख़ून में डूबी इक तख़्ती पर ग़ैन-ग़ुबारा लिक्खा था
अहमद सलमान
ग़ज़ल
हर लम्हा घमसान का रन है कौन अपने औसान में है
कौन है ये? अच्छा तो मैं हूँ लाश तो हाँ इक यार गिरी
जौन एलिया
ग़ज़ल
ख़त के पुर्ज़े नामा-बर की लाश के हमराह हैं
किस ढिटाई से मिरे ख़त का जवाब आने को है