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ग़ज़ल
क़ाबिल-ए-क़त्ल न ऐ लश्कर-ए-मिज़्गाँ हम थे
दिल की उजड़ी हुई बस्ती के निगहबाँ हम थे
तअशशुक़ लखनवी
ग़ज़ल
देखा गया न मुझ से मआनी का क़त्ल-ए-आम
चुप-चाप मैं ही लफ़्ज़ों के लश्कर से कट गया
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
बहुत नाज़ुक हैं मेरे सर्व क़ामत तेग़ज़न लोगो
हज़ीमत ख़ुर्दगी मेरी सफ़-ए-लश्कर पे लिख देना
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
ग़ज़ल
शब को जब अबरू-ओ-मिज़्गाँ की सफ़-आराई हुई
शोख़ियों में दब गई शर्म-ओ-हया आई हुई
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
लहू टपका है रफ़्ता-रफ़्ता मिज़्गान-ए-मुग़न्नी से
हुआ है ख़ुश दिल-ए-अंदोह-गीं आहिस्ता आहिस्ता
रुख़्साना निकहत लारी उम्म-ए-हानी
ग़ज़ल
बयाँ क्या कीजिए बेदाद-ए-काविश-हा-ए-मिज़गाँ का
कि हर यक क़तरा-ए-ख़ूँ दाना है तस्बीह-ए-मरजाँ का
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
वदीअत-ख़ाना-ए-बेदाद-ए-काविश-हा-ए-मिज़गाँ हूँ
नगीन-ए-नाम-ए-शाहिद है मिरे हर क़तरा-ए-ख़ूँ तन में
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
लश्कर-ए-क़ल्ब-ए-सफ़-ए-उश्शाक़ में है ग़लग़ला
यक्का-ताज़-ए-आह कूँ किस ने किया है ना-रसीद
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
शौक़-ए-अफ़्सुर्दा का मुझ से न गिला कर कि मुझे
ए'तिबार-ए-करम-ए-जुम्बिश-ए-मिज़्गाँ भी नहीं
इज्तिबा रिज़वी
ग़ज़ल
उधर सय्याद चश्म-ओ-दाम-ए-ज़ुल्फ़-ओ-नावक-ए-मिज़्गाँ
इधर पहलू में दिल इक सैद-ए-लाग़र नीम-बिस्मिल है
वलीउल्लाह मुहिब
ग़ज़ल
जला है किस क़दर दिल ज़ौक़-ए-काविश-हा-ए-मिज़्गाँ पर
कि सौ सौ नश्तरों की नोक है इक इक रग-ए-जाँ पर
साहिर देहल्वी
ग़ज़ल
अपनी क़िस्मत में ग़म-ए-अर्सा-ए-हिज्राँ है तो क्या
अश्क मिन्नत-कश-ए-गहवारा-ए-मिज़्गाँ है तो क्या
अख़्तर ज़ियाई
ग़ज़ल
ख़याल-ए-जुम्बिश-ए-मिज़्गाँ न रक्खा
हमारे ज़ख़्म में टाँके दिए क्यूँ