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ग़ज़ल
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
वक़्त की आए दिन की राड़ ज़ीस्त की दम-ब-दम लताड़
उस पे ग़मों की छेड़-छाड़ कोई न क्यूँ चिड़ा करे
मन्नान बिजनोरी
ग़ज़ल
क्या क्या फ़ित्ने सर पर उस के लाता है माशूक़ अपना
जिस बे-दिल बे-ताब-ओ-तवाँ को इश्क़ का मारा जाने है