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ग़ज़ल
कहा कि ''अर्ज़ करें हम पे जो गुज़रता है?''
कहा ''ख़बर है हमें क्यूँ ज़बाँ पे लाते हो''
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
कैसे दुखों के मौसम आए कैसी आग लगी यारो
अब सहराओं से लाते हैं फूलों के नज़राने लोग
उबैदुल्लाह अलीम
ग़ज़ल
वज्द में लाते हैं मुझ को बुलबुलों के ज़मज़मे
आप के नज़दीक बा-मअ'नी सदा हो या न हो
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
कभी दरिया उठा लाते हैं अपनी टूटी कश्ती में
कभी इक क़तरा-ए-शबनम से तुग़्यानी भी करते हैं
अज़ीज़ नबील
ग़ज़ल
काट कर रातों के पर्बत अस्र-ए-नौ के तेशा-ज़न
जू-ए-शीर-ओ-चश्मा-ए-नूर-ए-सहर लाते रहे