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ग़ज़ल
क्या 'मीर' तू रोता है पामाली-ए-दिल ही को
उन लौंडों ने तो दिल्ली सब सर पे उठा ली है
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
साइंस के पेपर में लौंडा इंग्लिश के नक़लाँ ले आया
पढ़ कर आया औंधा चित्ता ये मालूम न वो मालूम
पागल आदिलाबादी
ग़ज़ल
फ़र्बा था तवाना था तेरा जाना-माना था
जिस पे तू हुआ शैदा लौंडा है क़साई का
तमीज़ुद्दीन तमीज़ देहलवी
ग़ज़ल
समझें भी दोनों कर रही हैं क्या ये चार पाँच
लौंडी के यार चार हैं बीबी के यार पाँच