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ग़ज़ल
अहद-ए-जवानी रो रो काटा पीरी में लीं आँखें मूँद
या'नी रात बहुत थे जागे सुब्ह हुई आराम किया
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
निगाहें फेर लीं तुम ने तो हम किस की तरफ़ देखें
तुम्ही कह दो मोहब्बत का फ़साना किस को आता है
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
मिरे लिए तो है इक़रार-ए-बिल-लिसाँ भी बहुत
हज़ार शुक्र कि मुल्ला हैं साहिब-ए-तसदीक़
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
मिरी बर्बादियाँ भी देख लीं तुम ने जहाँ वालो
जो करता है मोहब्बत वो युंही नाकाम होता है
राजा मेहदी अली ख़ाँ
ग़ज़ल
अब तो हमें मंज़ूर है ये भी शहर से निकलीं रुस्वा हूँ
तुझ को देखा बातें कर लीं मेहनत हुई वसूल मियाँ
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
ये आलम देख कर तू ने भी आँखें फेर लीं वर्ना
कोई गर्दिश नहीं थी गर्दिश-ए-अय्याम से पहले
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
दुनिया की बहारों से आँखें यूँ फेर लीं जाने वालों ने
जैसे कोई लम्बे क़िस्से को पढ़ते पढ़ते उकता जाए
नुशूर वाहिदी
ग़ज़ल
दिल मिरा लेने की ख़ातिर मिन्नतें क्या क्या न कीं
कैसे नज़रें फेर लीं मतलब निकल जाने के बा'द
अज्ञात
ग़ज़ल
तू ने आँखें तो मुझे देख के नीची कर लीं
मेरे दुश्मन तिरी नज़रों से उतर क्यूँ न गए
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
इसी उम्मीद पर तो काट लीं ये मुश्किलें हम ने
अब इस के ब'अद तो ऐ 'शाद' आसानी में रहना है
ख़ुशबीर सिंह शाद
ग़ज़ल
अरिनी ओ लन-तरानी का सब राज़ खुल गया
क्या नश्शा-ए-ग़रीब है शर्ब-उल-यहूद में