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ग़ज़ल
सारे घर में शाम ढले तक खेल वो धूप और छाँव का
लप्पे पत्ते कच्चे आँगन में लोट लगाती दो-पहरें
इशरत आफ़रीं
ग़ज़ल
सितम था बचपन का वो ज़माना ग़ज़ब वो दिल का पसंद आता
वो गोद में मेरी लोट जाना मचल मचल कर किसी हसीं का
जलील मानिकपूरी
ग़ज़ल
अब तो वो भी लोट है बुलबुल तिरी आवाज़ पर
बारकल्लाह ख़ूब फाँसा तू ने दिल सय्याद का
जलील मानिकपूरी
ग़ज़ल
मिर्ज़ा आसमान जाह अंजुम
ग़ज़ल
मुँह चाँद उस पे ज़ुल्फ़-ए-रसा सर से पाँव तक
क्यूँ लोट-पोट हो न अदा सर से पाँव तक
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
मुँह चाँद उस पे ज़ुल्फ़-ए-रसा सर से पाँव तक
क्यूँ लोट-पोट हो न अदा सर से पाँव तक
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
लोट था दिल क़ामत-ए-दिलदार पर मुद्दत हुई
नख़्ल-ए-तूबा पर था अपना आशियाना याद है
मिर्ज़ा मासिता बेग मुंतही
ग़ज़ल
लट-पटे सज नीं तिरे दिल कूँ किया है लोट-पोट
वर्ना आलम बीच टुक बंदों का कुछ तोड़ा नहीं
आबरू शाह मुबारक
ग़ज़ल
मैं लोट हो गया हूँ ख़त-ए-सब्ज़-रंग पर
ख़ार-ए-चमन से दामन-ए-दिल पे अटक गया