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ग़ज़ल
मुट्ठी भर लोगों के हाथों में लाखों की तक़दीरें हैं
जुदा जुदा हैं धर्म इलाक़े एक सी लेकिन ज़ंजीरें हैं
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
थके लोगों को मजबूरी में चलते देख लेता हूँ
मैं बस की खिड़कियों से ये तमाशे देख लेता हूँ
मुनीर नियाज़ी
ग़ज़ल
उन्हीं लोगों की बदौलत ये हसीं अच्छे हैं
चाहने वाले इन अच्छों से कहीं अच्छे हैं
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
बहुत से लोगों को ग़म ने जिला के मार दिया
जो बच रहे थे उन्हें मय पिला के मार दिया
अब्दुल हमीद अदम
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
तेरी लटों में सो लेते थे बे-घर आशिक़ बे-घर लोग
बूढ़े बरगद आज तुझे भी काट गिराया लोगों ने
कैफ़ भोपाली
ग़ज़ल
बहुत मज़बूत लोगों को भी ग़ुर्बत तोड़ देती है
अना के सब हिसारों को ज़रूरत तोड़ देती है