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ग़ज़ल
देख कर फूलों को अँगारों पे लोटूँ ऐ गुल
बे-तेरे गुलशन-ए-फ़िरदौस जहन्नम हो जाए
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
ग़ज़ल
हैराँ हूँ कि अब लाऊँ कहाँ से मैं ज़बाँ और
लब कहते हैं कुछ और उन्हें होता है गुमाँ और
बिस्मिल साबरी
ग़ज़ल
ये ऐसा क़र्ज़ है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता
मैं जब तक घर न लौटूँ मेरी माँ सज्दे में रहती है
मुनव्वर राना
ग़ज़ल
कहाँ से ढूँढ के लाऊँ पुराने ख़्वाब आँखों में
कोई मंज़र नहीं टिकता मिरी सैराब आँखों में
सावन शुक्ला
ग़ज़ल
ऐसा मुमकिन तो नहीं फिर भी ये जी चाहता है
मैं न घर लौटूँ तो शब भर कोई रस्ता देखे
इम्तियाज़ साग़र
ग़ज़ल
अब्र-ए-बाराँ के मज़े लूटूँ मैं क्यूँकर 'मंज़र'
दम भी लेने दे मिरी आँखों की बरसात मुझे
मंज़र लखनवी
ग़ज़ल
काश इस बार मैं दरियाओं से ज़िंदा लौटूँ
क्यूँकि ये ख़ाक तो मिट्टी में दबानी है मुझे
शाहनवाज़ अंसारी
ग़ज़ल
नमक-ए-हुस्न से उस लब के मज़े लूटूँ हूँ
किस नमक-दाँ का नमक-ख़्वार हूँ अल्लाह अल्लाह