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ग़ज़ल
दिल तो इन पाँव पे लोटे है मिरा वक़्त-ए-ख़िराम
शब को दुज़दी से भी पर उन को दबा सकते नहीं
जुरअत क़लंदर बख़्श
ग़ज़ल
दिल उस का न लोटे कभी फूलों की सफ़ा पर
शबनम को दिखा दूँ जो तिरे गात का आलम
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
लोटते हैं मस्त मय-ख़ाने के दर पर जा-ब-जा
जाम ओ सहबा साक़ी ओ पीर-ए-मुग़ाँ को इश्क़ है
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
लोटते हैं जिस को सुन सुन कर हज़ारों मुर्ग़-ए-दिल
हो रहा है ज़िक्र किस के गेसुओं के दाम का
मियाँ दाद ख़ां सय्याह
ग़ज़ल
हम किस से पूछें तुम ही कहो कुछ काम ये जीना आया भी
हम लोटते हैं अँगारों पर कुछ तुम को मसर्रत होती है
जिगर बरेलवी
ग़ज़ल
कुश्ता-ए-नाज़ तिरा क्यूँ न ज़मीं पर लोटे
दाग़-ए-दिल जितने हैं इस तरह वो भर जाते हैं
शेर सिंह नाज़ देहलवी
ग़ज़ल
किधर लोटे किधर पोटे हँसे बोले किधर जा कर
कहाँ लिपटे कहाँ सोए कहाँ चिमटे कहाँ लिपटे