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ग़ज़ल
कभी मैं जुरअत-ए-इज़हार-ए-मुद्दआ तो करूँ
कोई जवाज़ तो हो लुतफ़-ए-बेसबब के लिए
सय्यद आबिद अली आबिद
ग़ज़ल
रवानी-हा-ए-मौज-ए-ख़ून-ए-बिस्मिल से टपकता है
कि लुत्फ़-ए-बे-तहाशा-रफ़्तन-ए-क़ातिल-पसंद आया
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
लुत्फ़-ए-करम न हो न हो कम है वो क्या 'अता हो जो
काविश-ए-बे-सबब सही कुल्फ़त-ए-बे-तलब सही
रशीद रामपुरी
ग़ज़ल
बे-सबब ऐ दिल-ए-नादाँ कहीं लौटा तो नहीं
उस ने आवाज़ ही दी है तुझे रोका तो नहीं
मुकर्रम हुसैन आवान ज़मज़म
ग़ज़ल
जफ़ा-ए-बे-सबब कम है कि जौर-ए-ना-रवा कम है
तिरी बे-दाद ऐ ज़ालिम न होने पर भी क्या कम है
मेला राम वफ़ा
ग़ज़ल
जो मज़ा है तिश्नगी में है जो लुत्फ़-ए-बे-क़रारी
तुझे क्या बताऊँ हमदम तिरा दिल जला नहीं है