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ग़ज़ल
उन की वहशत से ये ज़ाहिर हो रहा है ख़ुद-ब-ख़ुद
ये उसी मौज़ा में रहते हैं जो है मंगल के पास
शौक़ बहराइची
ग़ज़ल
जुनूँ में हसरतें हैं सैंकड़ों वाबस्ता-ए-वहशत
नज़र आ जाएगा जंगल में मंगल देखते जाओ