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ग़ज़ल
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
उस की याद की बाद-ए-सबा में और तो क्या होता होगा
यूँही मेरे बाल हैं बिखरे और बिखर जाते होंगे
जौन एलिया
ग़ज़ल
जब से मोहब्बत होती है इस में दम अटका रहता है
जिस्म बिखर जाता है लेकिन आँखें जागा करती हैं
नसीम निकहत
ग़ज़ल
दिलों में दर्द भरता आँख में गौहर बनाता हूँ
जिन्हें माएँ पहनती हैं मैं वो ज़ेवर बनाता हूँ
सलीम अहमद
ग़ज़ल
हुई इस दौर में मंसूब मुझ से बादा-आशामी
फिर आया वो ज़माना जो जहाँ में जाम-ए-जम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
घरानों से मोहब्बत की फ़ज़ाएँ छीन लेते हैं
सितमगर फूल से बच्चों की माएँ छीन लेते हैं