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ग़ज़ल
अंधों बहरों की नगरी में यूँ कौन तवज्जोह करता है
माहौल सुनेगा देखेगा जिस वक़्त बजेंगी ज़ंजीरें
हफ़ीज़ मेरठी
ग़ज़ल
हर पत्ता ना-आसूदा है माहौल-ए-चमन आलूदा है
रह जाएँ लरज़ती शाख़ों पर दो चार गुलाब तो अच्छा हो