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ग़ज़ल
अब न वो मैं न वो तू है न वो माज़ी है 'फ़राज़'
जैसे दो शख़्स तमन्ना के सराबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
दफ़्न जब ख़ाक में हम सोख़्ता-सामाँ होंगे
फ़िल्स माही के गुल-ए-शम-ए-शबिस्ताँ होंगे
मोमिन ख़ाँ मोमिन
ग़ज़ल
तू हुमा का है शिकारी अभी इब्तिदा है तेरी
नहीं मस्लहत से ख़ाली ये जहान-ए-मुर्ग़-ओ-माही
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
जब कभी दरिया में होते साया-अफ़गन आप हैं
फ़िल्स-ए-माही को बताते माह-ए-रौशन आप हैं
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
माहि-ए-बे-आब हैं आँखों की बे-कल पुतलियाँ
इन निगाहों से कोई मंज़र निहाँ होने को है
अताउल हक़ क़ासमी
ग़ज़ल
गोया फ़क़ीर मोहम्मद
ग़ज़ल
न खींचो आशिक़-तिश्ना-जिगर के तीर पहलू से
निकाले पर है मिस्ल-ए-माही-ए-तस्वीर पहलू से
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़
ग़ज़ल
कहाँ मय-ख़ाने का दरवाज़ा 'ग़ालिब' और कहाँ वाइ'ज़
पर इतना जानते हैं कल वो जाता था कि हम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
ना-तवाँ का भला किस मुँह से मैं शिकवा करूँ
ख़ाल है याँ महर ख़ामोश लब-ए-गुफ़्तार पर