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ग़ज़ल
मालिक-उल-मुल्क नसारा हुए कलकत्ते के
ये तो निकली अजब इक वज़्अ' की जंजाल की खाल
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
हुक्म-ए-हाकिम न सही मर्ग-ए-मुफ़ाजात से कम
मालिक-उल-मुल्क पे ईमाँ की सज़ा और सही
मौलाना मोहम्मद अली जौहर
ग़ज़ल
बादशाह-ए-इश्क़ ने मुझ को दिए हैं ये ख़िताब
आफ़त-उल-मुल्क और फ़नाउद्दौला 'उज़लत'-ख़ाक-जंग
वली उज़लत
ग़ज़ल
वज़ीर-उल-मुल्क का अज़-बस-कि मय-ए-नोशाँ पे क़दग़न है
बजाए मय, है वो याँ कौन जो कत्था नहीं पीता
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
ग़ज़ल
अब जो मुल्ला वाइ'ज़ करे तो ख़ौफ़ सा आने लगता है
मोहन-दास से ना'तें सुन कर रिक़्क़त तारी होती थी
जानाँ मलिक
ग़ज़ल
हयात-ए-फ़ानी-ए-'मुल्ला' की लज़्ज़तों की क़सम
बला से ज़िंदगी-ए-जावेदाँ मिले न मिले
आनंद नारायण मुल्ला
ग़ज़ल
राज़-ए-मय-नोशी-ए-'मुल्ला' हुआ इफ़शा वर्ना
समझा जाता था वली लग़्ज़िश-ए-पा से पहले
आनंद नारायण मुल्ला
ग़ज़ल
राज़-ए-मय-नोशी-ए-'मुल्ला' हुआ इफ़शा वर्ना
क्या वो मद-मस्त न था लग़्ज़िश-ए-पा से पहले