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ग़ज़ल
राह में सूरत-ए-नक़्श-ए-कफ़-ए-पा रहता हूँ
हर घड़ी बनने बिगड़ने को पड़ा रहता हूँ
मुनीर शिकोहाबादी
ग़ज़ल
जो तेरे नक़्श-ए-कफ़-ए-पा पे चल गए होते
तो मेहर-ओ-माह से आगे निकल गए होते
नादिम अशरफी बुरहानपुरी
ग़ज़ल
जिस ज़मीं पर तिरा नक़्श-ए-कफ़-ए-पा होता है
एक इक ज़र्रा वहाँ क़िबला-नुमा होता है
हरी चंद अख़्तर
ग़ज़ल
इस दोशीज़ा मिट्टी पर नक़्श-ए-कफ़-ए-पा कोई भी नहीं
झड़ते फूल बरसती बारिश तेज़ हवा कोई भी नहीं
शहज़ाद अहमद
ग़ज़ल
जिस दर पे तिरा नक़्श-ए-कफ़-ए-पा न रहेगा
रिंदों के लिए क़ाबिल-ए-सजदा न रहेगा