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ग़ज़ल
ये गुस्ताख़ी ये छेड़ अच्छी नहीं है ऐ दिल-ए-नादाँ
अभी फिर रूठ जाएँगे अभी तो मन के बैठे हैं
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
या रब ये जहान-ए-गुज़राँ ख़ूब है लेकिन
क्यूँ ख़्वार हैं मर्दान-ए-सफ़ा-केश ओ हुनर-मंद
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
कोई बात दिल में वो ठान के न उलझ पड़े तिरी शान से
वो नियाज़-मंद जो सर-ब-ख़म कई दिन से तेरे हुज़ूर है
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
शाख़ से उड़ गया परिंद है दिल-ए-शाम-ए-दर्द-मंद
सहन में है मलाल सा हुज़्न सा आसमाँ में है