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ग़ज़ल
तिरी महफ़िल में फ़र्क़-ए-कुफ़्र-ओ-ईमाँ कौन देखेगा
फ़साना ही नहीं कोई तो उनवाँ कौन देखेगा
अज़ीज़ वारसी
ग़ज़ल
'इशरत' बता दो राज़-ए-मोहब्बत ज़माने को
दुनिया में क्यों ये कश्मकश-ए-कुफ़्र-ओ-दीं रहे
इशरत जहाँगीरपूरी
ग़ज़ल
मिरी नज़रों में अब बाक़ी नहीं है ज़ौक़-ए-कुफ़्र-ओ-दीं
मैं इक मरकज़ पे अब दैर-ओ-हरम महसूस करता हूँ
बहज़ाद लखनवी
ग़ज़ल
मिल्लत-ए-कुफ़्र-ओ-दीं की बहस गर्म थी ख़ानक़ाह में
इतने में कोई मय पिए दस्त-ब-जाम आ गया
कैफ़ी चिरय्याकोटी
ग़ज़ल
देखिए बस ये कि इज़्न-ए-चश्म-ए-जानाना है क्या
'इश्क़ है तो इम्तियाज़-ए-कुफ़्र-ओ-दीं मत कीजिए
अली मीनाई
ग़ज़ल
ऐ दिल वालो घर से निकलो देता दावत-ए-आम है चाँद
शहरों शहरों क़रियों क़रियों वहशत का पैग़ाम है चाँद