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ग़ज़ल
अभी मरते हैं हम जीने का ता'ना फिर न देना तुम
ये ता'ना उन को देना जिन से ऐसा हो नहीं सकता
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
हम भी मंज़िल पे पहुँच जाएँगे मरते खपते
क़ाफ़िला यारों का जाता है अगर जाने दो
मियाँ दाद ख़ां सय्याह
ग़ज़ल
जावेद अख़्तर
ग़ज़ल
हम तो चाहत में भी 'ग़ालिब' के मुक़ल्लिद हैं 'फ़राज़'
जिस पे मरते हैं उसे मार के रख देते हैं