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ग़ज़ल
बहुत मारूफ़ रक्खा था तिरे ख़्वाबों ने दर-पर्दा
सुनाना चाहें हाल-ए-दिल तो दुश्वारी कभी होगी
किश्वर नाहीद
ग़ज़ल
तारीख़-ए-बदायूँ में मारूफ़ सुख़न-वर हैं
'सैफ़ी' की नज़र लेकिन गिर्वीदा-ए-'फ़ानी' है
सैफ़ी प्रेमी
ग़ज़ल
हँसी आती है कहता था कि ऐसा हो नहीं सकता
ये मेरा दिल है मेरा दिल किसी का हो नहीं सकता
मारूफ़ रायबरेलवी
ग़ज़ल
कहाँ दुनिया से लड़ना है कहाँ ख़ुद से बग़ावत है
उसे समझा रहा हूँ जो मोहब्बत की रिवायत है
नासिर मारूफ़
ग़ज़ल
कुछ 'हफ़ीज़' ऐसा नहीं जिस से कि तुम वाक़िफ़ न हो
आदमी वो तो बहुत मा'रूफ़ है मशहूर है
हफ़ीज़ जौनपुरी
ग़ज़ल
अगर इज़्ज़त मिले तो सर तकब्बुर से उठाना मत
किसी की ख़ाक को तुम अपने पैरों से उड़ाना मत
नासिर मारूफ़
ग़ज़ल
जो बातिन में मशग़ूल हुए महबूब हुए मक़्बूल हुए
मजहूल हुए मारूफ़ कहाँ मशहूर जो हैं मंज़ूर नहीं
पंडित जवाहर नाथ साक़ी
ग़ज़ल
न कर हरगिज़ न कर ये गुफ़्तुगू अच्छा नहीं लगता
वफ़ा का ज़िक्र मेरे रू-ब-रू अच्छा नहीं लगता
मारूफ़ रायबरेलवी
ग़ज़ल
दुआ में पहले सा मारूफ़ अब असर ही नहीं नहीं
हवा का रुख़ जो बदल दे वो चश्म-ए-तर ही नहीं