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ग़ज़ल
हिजाब-ए-मासियत पर्दा ही किस के नूर-ए-इरफ़ाँ का
कि जन्नत से जुदा रह कर भी मैं जन्नत में दाख़िल था
शौकत थानवी
ग़ज़ल
फिर हरम में हो रहा है इम्तिहान-ए-अहल-ए-दिल
सज्दा-हा-ए-मासियत ले आऊँ बुत-ख़ाने से क्या
शौकत थानवी
ग़ज़ल
जुज़ मासियत के कुछ नहीं है काम मुझ आसी के तईं
हर रोज़ ओ हर शाम ओ सहर कोई कुछ कहो कोई कुछ कहो
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
ग़ज़ल
ज़ीस्त है इक मासियत सोज़-ए-दिली तेरे बग़ैर
हाँ मोहब्बत भी है इक आलूदगी तेरे बग़ैर
आनंद नारायण मुल्ला
ग़ज़ल
ये बार-ए-मासियत मंज़िल कड़ी और शाम-ए-तन्हाई
चले हैं क्या समझ कर हम भी रुस्वा-ए-जहाँ हो कर