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ग़ज़ल
मिरे दिल के किसी कोने में इक मासूम सा बच्चा
बड़ों की देख कर दुनिया बड़ा होने से डरता है
राजेश रेड्डी
ग़ज़ल
हम तो हैं परदेस में देस में निकला होगा चाँद
अपनी रात की छत पर कितना तन्हा होगा चाँद
राही मासूम रज़ा
ग़ज़ल
आँगन के मा'सूम शजर ने एक कहानी लिक्खी है
इतने फल शाख़ों पे नहीं थे जितने पत्थर बिखरे हैं
राहत इंदौरी
ग़ज़ल
वो भी कोई हम ही सा मासूम गुनाहों का पुतला था
नाहक़ उस से लड़ बैठे थे अब मिल जाए मनाएँगे
बशर नवाज़
ग़ज़ल
भरी दुनिया में तन्हा बे-सहारा देख कर ख़ुद को
कोई मासूम रोता है तो पत्थर चीख़ उठता है
अर्पित शर्मा अर्पित
ग़ज़ल
नन्हे होंटों पर खिलें मासूम लफ़्ज़ों के गुलाब
और माथे पर कोई हर्फ़-ए-दुआ रौशन करे