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ग़ज़ल
लम्हा लम्हा पड़ती रहती है दिलों में इक गिरह
तेवरी इक चल रही है रात दिन माथों के बीच
जावेद शाहीन
ग़ज़ल
अहमद जहाँगीर
ग़ज़ल
अहमद जहाँगीर
ग़ज़ल
ख़िरद-मंदों से क्या पूछूँ कि मेरी इब्तिदा क्या है
कि मैं इस फ़िक्र में रहता हूँ मेरी इंतिहा क्या है
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
बड़े लोगों के ऊँचे बद-नुमा और सर्द महलों को
ग़रीब आँखों से तकता हूँ तो आँखें भीग जाती हैं