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ग़ज़ल
रुख़्साना निकहत लारी उम्म-ए-हानी
ग़ज़ल
इक़्लीम-ए-दिल सीं 'अक़्ल ने ली तब रह-ए-गुरेज़
जब सूबा-दार-ए-इश्क़ ने आ कर ‘अमल किया
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
गरचे है तर्ज़-ए-तग़ाफ़ुल पर्दा-दार-ए-राज़-ए-इश्क़
पर हम ऐसे खोए जाते हैं कि वो पा जाए है
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
कारज़ार-ए-इश्क़-ओ-सर-मस्ती में नुसरत-याब हों
वो जुनूनी दार तक जाने को जो बेताब हूँ
अफ़ज़ल परवेज़
ग़ज़ल
पूछता हूँ लग़्ज़िश-ए-मस्ताना-ए-अर्बाब-ए-‘इश्क़
आइना-दार-ए-ख़िराम-ए-दोस्त हो जाती है क्या
ज़हीन शाह ताजी
ग़ज़ल
पूछता हूँ लग़्ज़िश-ए-मस्ताना-ए-अर्बाब-ए-'इश्क़
आइना-दार-ए-ख़िराम-ए-दोस्त हो जाती है क्या
ज़हीन शाह ताजी
ग़ज़ल
दर-हक़ीक़त है यही मेराज-ए-इश्क़-ओ-आशिक़ी
मेरे उस के दरमियाँ अब कोई भी हाइल नहीं