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ग़ज़ल
मबादा उस को दिक़्क़त हो निशाने तक पहुँचने में
सो मैं ने फूल से दीवार के रख़्ने को भरना है
अब्बास ताबिश
ग़ज़ल
निकोहिश है सज़ा फ़रियादी-ए-बे-दाद-ए-दिलबर की
मबादा ख़ंदा-ए-दंदाँ-नुमा हो सुब्ह महशर की
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
मबादा मेरे जाने तक वो चश्मा ख़ुश्क हो जाए
मुझे आब-ए-अबद की प्यास है मैं जाने वाला हूँ