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ग़ज़ल
वो लजाए मेरे सवाल पर कि उठा सके न झुका के सर
उड़ी ज़ुल्फ़ चेहरे पे इस तरह कि शबों के राज़ मचल गए
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
अनवर मिर्ज़ापुरी
ग़ज़ल
जो थके थके से थे हौसले वो शबाब बन के मचल गए
वो नज़र नज़र से गले मिले तो बुझे चराग़ भी जल गए
शायर लखनवी
ग़ज़ल
बीन हवा के हाथों में है लहरे जादू वाले हैं
चंदन से चिकने शानों पर मचल उठे दो काले हैं
अमीक़ हनफ़ी
ग़ज़ल
वो लजाए मेरे सवाल पर कि उठा सके न झुका के सर
उड़ी ज़ुल्फ़ चेहरे पे इस तरह कि शबों के राज़ मचल गए
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
इधर मिरा दिल तड़प रहा है तिरी जवानी की जुस्तुजू में
उधर मिरे दिल की आरज़ू में मचल रहा है शबाब तेरा
जोश मलीहाबादी
ग़ज़ल
मचल रहा था दिल बहुत सो दिल की बात मान ली
समझ रहा है ना-समझ की दाव उस का चल गया