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ग़ज़ल
ज़माँ मकाँ है फ़क़त मद्द-ओ-जज़्र-ए-जोश-ए-हयात
बस एक मौज की हैं झलकियाँ क़रार-ओ-सबात
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
न तो बे-करानी-ए-दिल रही न तो मद्द-ओ-जज़्र-ए-तलब रहा
तिरे बाद बहर-ए-ख़याल में न ख़रोश उठा न ग़ज़ब रहा
अमीर हम्ज़ा साक़िब
ग़ज़ल
मद्द-ओ-जज़्र-ए-बहर-ए-हस्ती कोई दम की बात है
दामन-ए-साहिल में गुम हो जाएँगी तुग़्यानियाँ
ऋषि पटियालवी
ग़ज़ल
मैं खोना चाहता हूँ मद्द-ओ-जज़्र-ए-बहर में 'शौकत'
वो साहिल-आश्ना कश्ती का मेरी ना-ख़ुदा क्यूँ हो
शौकत थानवी
ग़ज़ल
मैं मद्द-ओ-जज़्र-ए-तख़य्युल को उस के नाम करूँ
कि जिस का ज़िक्र हमेशा मिरे दरूद में था
नक़्क़ाश अली बलूच
ग़ज़ल
'ज़हीन' इस दह्र में है मद्द-ओ-जज़्र-ए-ज़िंदगी इस से
मोहब्बत साज़-ए-दिल पर जिन सुरों से गुनगुनाई है
ज़हीन शाह ताजी
ग़ज़ल
मय उभर कर जाम में अंगड़ाइयाँ लेने लगी
कैसा मद्द-ओ-जज़्र साक़ी तेरे मयख़ाने में है
चरख़ चिन्योटी
ग़ज़ल
जो मद्द-ओ-जज़्र से वाक़िफ़ नहीं हैं दरिया के
वो साहिलों पे ही अक्सर मकाँ बनाते हैं
ख़्वाजा जावेद अख़्तर
ग़ज़ल
तुम अपनी साँसों के इस मद्द-ओ-जज़्र ही से 'अदीम'
कुछ इंक़लाब उठाओ तो कोई बात बने
बिस्मिल्लाह अदीम
ग़ज़ल
दरिया के मद्द-ओ-जज़्र भी पानी के खेल हैं
हस्ती ही के करिश्मे हैं क्या मौत क्या हयात
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
क़तरा-ए-शबनम में देखूँ शो'लगी का मद्द-ओ-जज़्र
सुब्ह से ही शाम की सूरत का अंदाज़ा हुआ
मुस्लिम शमीम
ग़ज़ल
हमेशा दिल में ग़मों का है मद्द-ओ-जज़्र मगर
नज़र में आती हूँ ठहरी हुई नदी की तरह
फौज़िया अख़्तर अज़्का
ग़ज़ल
ये किस ख़्वाहिश का मद्द-ओ-जज़्र हैं मेरी निगाहें
मुझे सारा समुंदर इक भँवर क्यूँ लग रहा है
मोहम्मद अहमद रम्ज़
ग़ज़ल
अल्लाह रे ये दौर-ए-तरक़्क़ी का मद्द-ओ-जज़्र
है इर्तिक़ा-ए-अक़्ल से सारा जहाँ उदास