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ग़ज़ल
इतना सफ़ेद ख़ून है लोगों का अब यहाँ
रिश्ता भी रखते हैं किसी ज़ाती मफ़ाद पर
सय्यद कौनैन हैदर काज़मी
ग़ज़ल
है रस्म-ओ-राह बस अपने मफ़ाद की हद तक
यहाँ कहाँ है किसी को किसी से दिलचस्पी