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ग़ज़ल
रखते हैं मेरे अश्क से ये दीदा-ए-तर फ़ैज़
दामन में लिया अपने है दरिया ने गुहर फ़ैज़
मह लक़ा चंदा
ग़ज़ल
गो आप को है इश्क़ हर इक मह-लक़ा के साथ
अक़्द-ए-मुबीन कीजिए अक़्ल-ए-रसा के साथ
मोहम्मद जावेद अनवर
ग़ज़ल
न गुल से है ग़रज़ तेरे न है गुलज़ार से मतलब
रखा चश्म-ए-नज़र शबनम में अपने यार से मतलब
मह लक़ा चंदा
ग़ज़ल
गरचे गुल की सेज हो तिस पर भी उड़ जाती है नींद
सर रखूँ क़दमों पे जब तेरे मुझे आती है नींद
मह लक़ा चंदा
ग़ज़ल
इस लिए मिलता है वो माह-ए-लक़ा तीसरे दिन
रुख़ बदलती है ज़माने की हवा तीसरे दिन
अबुल बक़ा सब्र सहारनपुरी
ग़ज़ल
परी तुम हो मिरी जाँ हूर तुम हो मह-लक़ा तुम हो
जहाँ में जितने हैं माशूक़ उन सब से जुदा तुम हो