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ग़ज़ल
पढ़ सकता हूँ मैं जल्द किताब-ए-रुख़-ए-रौशन
चाहूँ तो मज़ामीन-ए-मक़ालात बता दूँ
सय्यद तम्जीद हैदर तम्जीद
ग़ज़ल
गाँव में अम्न से रहते हैं वफ़ा करते हैं
शुक्र है हम पे नहीं पड़ती महल्लात की गर्द