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ग़ज़ल
परेशाँ क्यों न हो जाऊँ किसी पागल की सूरत
नज़र आती है मुझ को आने वाले कल की सूरत
ख़ुर्शीद अम्बर प्रतापगढ़ी
ग़ज़ल
सर-ए-राह कोई मुझे मिला कि नक़ाब रुख़ से उठा दिया
इक अजीब शो'ला-ए-हुस्न था दिल-ओ-जाँ में आग लगा दिया
सूफ़ी मोहम्मद तंवीर साजिद नक़्शबन्दी
ग़ज़ल
वक़ार बिजनोरी
ग़ज़ल
अख़लाक़ बन्दवी
ग़ज़ल
उस पे करना मिरे नालों ने असर छोड़ दिया
मुझ को एक लुत्फ़ की कर के जो नज़र छोड़ दिया
ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़
ग़ज़ल
भले आदमी कहीं बाज़ आ अरे उस परी के सुहाग से
कि बना हुआ हो जो ख़ाक से उसे क्या मुनासिबत आग से
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
बन के किस शान से बैठा सर-ए-मिंबर वाइ'ज़
नख़वत-ओ-उज्ब हयूला है तो पैकर वाइ'ज़