आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "mai-kade"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "mai-kade"
ग़ज़ल
शाम के मस्कन में वीराँ मय-कदे का दर खुला
बाब गुज़री सोहबतों का ख़्वाब के अंदर खुला
मुनीर नियाज़ी
ग़ज़ल
लगी है भीड़ बड़ा मय-कदे का नाम भी है
कुछ इस में ख़ूबी-ए-रिंदान-ए-तिश्ना-काम भी है
रविश सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
मय-कदे में जो तिरे हुस्न का मज़कूर हुआ
संग-ए-ग़ैरत से मिरा शीशा-ए-दिल चूर हुआ
मीर मोहम्मदी बेदार
ग़ज़ल
तुम्हारे मय-कदे में जब क़दम रख देंगे दीवाने
सुराही काँप जाएगी लरज़ जाएँगे पैमाने