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ग़ज़ल
जब से हूँ हल्क़ा-ब-गोश-ए-दर-ए-मय-ख़ाना-ए-इश्क़
शीशा पहलू में है और हाथ में पैमाना-ए-इश्क़
वली काकोरवी
ग़ज़ल
लग़्ज़िश-ए-साक़ी-ए-मय-ख़ाना ख़ुदा ख़ैर करे
फिर न टूटे कोई पैमाना ख़ुदा ख़ैर करे
अब्दुल्लतीफ़ शौक़
ग़ज़ल
मय-ख़ाना-ए-हस्ती में अक्सर हम अपना ठिकाना भूल गए
या होश में जाना भूल गए या होश में आना भूल गए
अब्दुल हमीद अदम
ग़ज़ल
परी शीशे में और साग़र में है ख़ुर्शीद-ए-नूरंगीं
वो है तस्ख़ीर-ए-मय-ख़ाना ये है तनवीर-ए-मयख़ाना
साहिर देहल्वी
ग़ज़ल
नंग-ए-मय-ख़ाना था मैं साक़ी ने ये क्या कर दिया
पीने वाले कह उठे या पीर-ए-मय-ख़ाना मुझे
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
मस्ती-ए-रिंदाना हम सैराबी-ए-मय-ख़ाना हम
गर्दिश-ए-तक़दीर से हैं गर्दिश-ए-पैमाना हम
अली सरदार जाफ़री
ग़ज़ल
वो मय दे दे जो पहले शिबली ओ मंसूर को दी थी
तो 'बेदम' भी निसार-ए-मुर्शिद-ए-मय-ख़ाना हो जाए
बेदम शाह वारसी
ग़ज़ल
दर-ए-मय-ख़ाना से दीवार-ए-चमन तक पहुँचे
हम ग़ज़ालों के तआ'क़ुब में ख़ुतन तक पहुँचे