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ग़ज़ल
बहुत कुछ भूल हो गई भूलने का 'शाद' सुन आया
मिरी जाँ ग़म अबस है झिड़कियाँ सुनने का दिन आया
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
शाद अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
किस तरह कटती है ग़म की शाम देखा चाहिए
दर्द का होता है क्या अंजाम देखा चाहिए
सय्यद मुज़फ़्फ़र आलम ज़िया अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
बहार-ए-कैफ़-आगीं मख़्ज़न-ए-आलाम होती है
क़फ़स की सुब्ह से बेहतर चमन की शाम होती है
शाइर फ़तेहपुरी
ग़ज़ल
आब-ओ-दाना तिरा ऐ बुलबुल-ए-ज़ार उठता है
फ़स्ल-ए-गुल जाती है सामान-ए-बहार उठता है
मुबारक अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
न कुछ आग़ाज़ होता है न कुछ अंजाम होता है
तमाशा-गाह-ए-आलम बस ख़ुदा का नाम होता है