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ग़ज़ल
मोहब्बत के लिए कुछ ख़ास दिल मख़्सूस होते हैं
ये वो नग़्मा है जो हर साज़ पर गाया नहीं जाता
मख़मूर देहलवी
ग़ज़ल
है ज़ुल्म तिरा आम बहुत फिर भी सितमगर
मख़्सूस ये अंदाज़-ए-जफ़ा मेरे लिए है
मौलाना मोहम्मद अली जौहर
ग़ज़ल
शहर में धूम है इक शोला-नवा की 'मख़दूम'
तज़्किरे रस्तों में चर्चे हैं परी-ख़ानों में