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ग़ज़ल
ज़मीर-ए-पाक ओ निगाह-ए-बुलंद ओ मस्ती-ए-शौक़
न माल-ओ-दौलत-ए-क़ारूँ न फ़िक्र-ए-अफ़लातूँ
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
ज़र-ओ-माल-ओ-जवाहर ले भी और ठुकरा भी सकता हूँ
कोई दिल पेश करता हो तो ठुकराना नहीं आता
अदीम हाशमी
ग़ज़ल
उधर पिछले से अहल-ए-माल-ओ-ज़र पर रात भारी है
इधर बेदारी-ए-जम्हूर का अंदाज़ भी बदला
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
फ़क़त माल-ओ-ज़र-ए-दीवार-ओ-दर अच्छा नहीं लगता
जहाँ बच्चे नहीं होते वो घर अच्छा नहीं लगता
अब्बास ताबिश
ग़ज़ल
कहीं पे माल-ओ-दुनिया की ख़रीदारी की बातें हैं
कहीं पे दिन-ब-दिन बढ़ती रिया-कारी की बातें हैं
हिना रिज़्वी
ग़ज़ल
वो जिन्हें आई मयस्सर इब्तिदा-ए-माल-ओ-ज़र
हम पे हर लहज़ा सितम की इंतिहा करते रहे