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ग़ज़ल
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
क्या दुर्र-ए-अश्क से हैं दामन-ए-मिज़्गाँ ममलू
कब ज़बाँ है कि करें शुक्र-गुज़ारी आँखें
तअशशुक़ लखनवी
ग़ज़ल
हसरत-ए-दीद से ममलू दिल-ए-शैदाई है
शर्बत-ए-दीद कफ़-ए-पा का तमन्नाई है
सय्यद ग़ाफ़िर रिज़वी फ़लक छौलसी
ग़ज़ल
हलावत से मज़े से लुत्फ़-ओ-शीरीनी से ममलू है
ज़बाँ अपनी सुख़न अपना कलाम अपना बयाँ अपना
वहीदुद्दीन अहमद वहीद
ग़ज़ल
अपने साक़ी की शिकायत नहीं करता लेकिन
दूर कैसा है कि ममलू न मिरा जाम हुआ
मुंशी ठाकुर प्रसाद तालिब
ग़ज़ल
ख़ौफ़ कैसा है ये शाहीं के क़बीले में 'तपिश'
क्यूँ मम्लूँ में कोई पर नहीं होने देता
अब्दुस्समद ’तपिश’
ग़ज़ल
तिरी आँखों से होंटों का सफ़र ममनू' है तो फिर
समुंदर बन के तेरी आँखों के पानी से निकलूँगा