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ग़ज़ल
है अब इस मामूरे में क़हत-ए-ग़म-ए-उल्फ़त 'असद'
हम ने ये माना कि दिल्ली में रहें खावेंगे क्या
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
बात बहुत मा'मूली सी थी उलझ गई तकरारों में
एक ज़रा सी ज़िद ने आख़िर दोनों को बरबाद किया
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
ख़िलाफ़-ए-मा'मूल मूड अच्छा है आज मेरा मैं कह रही हूँ
कि फिर कभी मुझ से करते रहना ये भाव-ताव मुझे मनाओ
आमिर अमीर
ग़ज़ल
गरज-बरस प्यासी धरती पर फिर पानी दे मौला
चिड़ियों को दाने बच्चों को गुड़-धानी दे मौला
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
लबालब शीशा-ए-तहज़ीब-ए-हाज़िर है मय-ए-ला से
मगर साक़ी के हाथों में नहीं पैमाना-ए-इल्ला
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
अहल-ए-वफ़ा से बात न करना होगा तिरा उसूल मियाँ
हम क्यूँ छोड़ें उन गलियों के फेरों का मामूल मियाँ
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
ऐ इश्क़ क़सम तुझ को मा'मूरा-ए-आलम की
कोई ग़म-ए-फ़ुर्क़त में ग़म-ख़्वार नज़र आया